All India Rank Review : कोटा किसी के लिए मंजिल का मकान है तो किसी के लिए घुटन वाला घर। कोटा की इसी पहेली को डिकोड करने वाली कहानी है All India Rank. फिल्म कुछ हफ्तों पहले थियेटर में रिलीज हुई लेकिन कम स्क्रीन मिलने के चलते कम ही लोगों तक पहुंच सकी। अब फिल्म नेटफ्लिक्स आई है।

All India Rank Trailer

All India Rank Review

कोटा वाली कहानी…

All India Rank लखनऊ से चलकर कोटा जाने वाली अवध एक्सप्रेस से शुरू होती है। जिसमें विवेक और उसके पापा सवार हैं। सामान के साथ विवेक के पापा लेकर जा रहे हैं ढेर सारी उम्मीदें। वहीं विवेक के कंधों पर है इन्हीं उम्मीदों और सपनों का भार।

कुछ देर के बाद कहानी ट्रेन से निकलकर कोटा के हॉस्टल के कमरों, आईआईटी के एंट्रेंस वाले कठिन सिलेबस और उनकी क्लासों में पहुंच जाती है।

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यहां से शुरू होती है नंबरों की दौड़ इसमें कोई सपनों को भार समझ कर दब रहा है तो कोई उसके गुब्बारे पर चढ़कर आसमान में तैर रहा है।

इस सफर में विवेक के साथ कुछ क्लासमेट्स भी हैं, जो दोस्त है, सबक है और पसंद भी हैं। इनके बीच गुजरते हुए कहानी परीक्षा की घड़ी तक पहुंच जाती है।

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अंक नहीं स्ट्रगल देखिए

All India Rank की सबसे खास बात है कि फिल्म अंकों और एग्जाम के फेर में नहीं फंसती, बल्कि हर समय कोटा और स्टुडेंट की पर्सनल लाइफ झांकने का प्रयास करती है।

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कहानी 1997 में बेस्ड है तब का कोटा आज के कोटा से कतई अलग है लेकिन पढ़ाई का प्रेशर आज से ज्यादा अलग नहीं है। फिल्म ने सही ढंग से इसे पिरोया है। 90’s के लिहाज से ड्रेस अप, साइकल, टेलीफोन और भी ऐसी ही कई चीजें।

एक सीन में विवेक किसी सोच में डूबा हुआ है उसके बैकग्राउंड में एक दीवार पर उस दौर के नेता और प्रधानमंत्री रहे एचडी देवगौड़ा का विज्ञापन लिखा हुआ, ये बारीक समझ है किसी दौर को दिखाने की।

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वरुण ग्रोवर की फिल्म

फिल्म को मल्टी टैलेंटेड वरुण ग्रोवर ने लिखा और डायरेक्ट किया है। फिल्म नॉस्टयालजिक है। वरुण ने टीवीएफ की कहानियों की तरह छोटी-छोटी चीजों को पकड़ा है, कई मौकों पर उनका व्यंग्य भी समझ आता है।

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All India Rank हिंदी लिटरेचर की रियलिज्म वाली कहानी जैसी लगती है। जो आम जीवन से लोगों को जोड़ती है। हर किरदार के साथ एक द्वंद जुड़ा हुआ है।

पिता है उसके नौकरी ठीक नहीं चल रही, बीमार मां की परेशानियों के कारण अलग हैं और इनके बेटे की मुश्किलों को तो पूरी फिल्म बयां कर रही है। फिल्म का पर्दा अंत में सबकुछ ठीक करके नहीं गिरता, बल्कि बहुत कुछ समझने की गुंजाइश रह जाती है। एक बार को ये भी कहा जा सकता फिल्म बोरिंग और रिपीटेटिव कहानी लगती है।

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बात एक्टिंग की

अभिनय फिल्म से आखिर तक जोड़ने का काम करता है। Bodhisattva Sharma विवेक के किरदार में है जिन्हें देखकर दर्शक जूझता नजर आ सकता है। पिता के किरदार में Shashi Bhushan बाहर से सख्त और अंदर से सॉफ्ट हैं।  Geeta Agrawal Sharma के मां के किरदार में कमी निकालना कठिन है।

Sheeba Chaddha की एक्टिंग उनके रोल की तरह इंपैक्टफुल है। Samta Sudiksha समेत पूरा फ्रेंड सर्किल बढ़िया काम करता नजर आया है।

फिल्म देख सकते हैं इसे 90’s की कोटा फैक्ट्री हो सकती है बाकी नेटफ्लिक्स आपका, विश लिस्ट आपकी, चॉइस आपकी।

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