Bade Miyan Chote Miyan Review : ‘नया दुश्मन अक्सर पुराना दोस्त होता है।’ ईद के मौके पर इस हफ्ते की दूसरी बड़ी रिलीज Bade Miyan Chote Miyan का प्लॉट इसी डायलॉग में छुपा हुआ है। कैसे ? आइए जानते हैं…
Bade Miyan Chote Miyan Review
एक और आर्मी वाली फिल्म … ये तो मैं …
Bade Miyan Chote Miyan का ट्रेलर देखा हो तो आपको पता ही होगा फिल्म सोल्जर और आर्मी बेस्ड फिल्म है। फिल्म की शुरुआत आर्मी के काफिले पर लूट के साथ होती है। जहां से दुश्मन एक पैकेज चुरा लेता है जिससे एक झटके में किसी भी देश को खत्म किया जा सकता है।
अब पैकेज चुराने के साथ दुश्मन ने धमकी दी है कि वो भारत को उसी के हथियार से 3 दिनों के भीतर खत्म कर देगा। जब बात देश को बचाने की आती है तो खोज शुरू होती है दो ऐसे सोल्जर्स की जिसे आर्मी ने कोर्ट मार्शल कर दिया है।
सोल्जर्स को ढूंढा जाता है मनाया जाता है। फिर कहानी बैक स्टोरी में जाती है, लीड कैरेक्टर्स का बिल्ड अप होता है। फिर कहानी विलेन के फ्लैशबैक में झांकती है। फिर भारत को बचाने की जद्दोजहद कहानी को क्लाइमैक्स के पार पहुंचाती है।
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इंटरवल ब्लॉक में फंसी फिल्म
Bade Miyan Chote Miyan मास एंटरटेनर और देशभक्ति वाले सेट टेम्पलेट में बेस्ड है। फिल्म की शुरुआत से ही पबजी जैसी स्नाइपिंग और फाइटिंग सीक्वेंस जोरदार धमाकों के साथ दिखाती है।
जब धमाके की आवाज धीमी होते ही फिल्म लीड एक्टर्स से मिलवाती है। लेकिन फर्स्ट इम्प्रेशन वाली एंट्री कमजोर है। इसके बाद कई मौकों पर स्लो मोशन एंट्रीज आई हैं जो कुछ खास कमाल नहीं करती।
इंटरवल ब्लॉक जो एंट्री के बाद मास फिल्मों का सबसे मजबूत पक्ष माना जाता है। उसमें भी Bade Miyan Chote Miyan चूक जाती है। वजह इंटरवल से ठीक पहले कहानी का काफी स्लो हो जाना।
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दूसरे हाफ में फिर जब पृथ्वीराज सुकुमारन स्ट्राइक पर आते हैं तो उन से कनेक्ट कर पाना बहुत हद तक मुश्किल हो जाता है। उनका जो किरदार बना है वैसा हम पहले ही वेब शोज और फिल्मों में देख चुके हैं।
क्लाइमेक्स तक आते-आते जो देशभक्ति वाले इमोशन आने चाहिए वो नहीं है। क्लाइमेक्स ही क्या आर्मी की ड्रेस के अलावा कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि फिल्म में देश को किसी बड़े खतरे से बचाने की बात हो रही है।
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एक अच्छी स्क्रिप्ट ..?
मास मसाला है तो फिजिक्स से खिलवाड़ होना लाजमी है। लेकिन टेक्नोलॉजी का जो नेक्स्ट लेवल मजाक फिल्म में दिखाया गया उसे सहन करने के लिए ऑडियंस की तारीफ तो बनती हैं।
फिल्म के डायलॉग औसत से नीचे हैं। वहीं फिल्म में जो बीच-बीच में कॉमिक टाइमिंग ठूंसने की कोशिश की गई है तो उसके लिए तो दर्शकों को मुआवजा तक मिलना चाहिए। बैकग्राउंड म्यूजिक कुछ हद तक साथ देता है।
एक्टिंग की बात करने से पहले एक्टर्स की बात कर लेते हैं। बात अक्षय कुमार की है तो उन्हें एक अच्छी स्क्रिप्ट की बहुत ज्यादा जरूरत है। वहीं टाइगर श्रॉफ को चाहिए कि वे हवाई रोल छोड़कर कुछ सीरियस करने का सोचें तो बेहतर होगा।
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खिलाड़ी, टाइगर हैं तो कहानी की क्या जरूरत
इस बीच अक्षय कुमार के हिस्से जो कुछ भी आया है उन्होंने सही ढंग से निभाया है। उन्हें पता है इस तरह के किरदार कैसे करने हैं। हालांकि उनसे कुछ नया देखने को नहीं मिलता।
वहीं टाइगर श्रॉफ के किरदार का नाम रॉकी है जो बागी 3 वाले रॉनी के किरदार से काफी मेल खाता है। बागी 3 का जिक्र इसलिए क्योंकि यही टाइगर की आखिरी फिल्म मैंने देखी थी। एक्शन के सिवाय उनसे कुछ भी उम्मीद लगाना बेकार है।
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बात पृथ्वीराज सुकुमारन की करें तो उन्हें लाया सही गया है लेकिन यूज नहीं किया गया। किरदार थोड़ा सा और लेयर्ड होता तो मजा आ सकता था। मानुषी छिल्लर केवल कहानी के सिरों को जोड़ती हैं।
अलाया एफ का किरदार क्यों है क्या है इसका पता लगाने के लिए कोई नई तकनीक की दरकार है। सोनाक्षी सिन्हा को एआई टाइप किरदार देकर उन्हें एक्टिंग से दूर रखने की भरसक कोशिश की गई जो उनकी एक्टिंग देखकर ठीक भी लगता है।
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फिल्म के डायरेक्टर अली अब्बास जाफर हैं जो पहले टाइगर जिंदा है, सुल्तान जैसी फिल्में बना चुके हैं। लेकिन यहां उन्होंने सिद्धार्थ आनंद और रोहित शेट्टी टाइप कुछ कॉम्बो बनाने की कोशिश की है, जिसमें विफल रहे हैं।
अब आखिर में यही सलाह है कि Bade Miyan Chote Miyan के ट्रॉमा से तो एक बार निकल भी जाओगे लेकिन आखिर में जो पार्ट का दर्द दिया उससे कैसे निकलेंगे ये सोचने वाली बात है।