Heeramandi Hindi Review : इतिहास के हिस्से वाली किताबों के किसी कोने में लिखा है कि आजादी से पहले लाहौर में एक जगह हुआ करती थी हीरामंडी।

जो तवायफों का बाजार था। नहीं समझे, तवायफ यानी सेक्स वर्कर्स। जिनका देश की आजादी में कुछ योगदान था। जो तारीखों के साथ मिटता गया। Heeramandi ट्रेलर यहां देखें।

Heeramandi Hindi Review

इसी हीरामंडी पर संजय लीला भंसाली ने तसल्ली से वेबसीरीज बनाई है। लंबे समय से सुनने में आ रहा था, भंसाली अपनी पहली वेब सीरीज बना रहें, अब जाकर देखने को मिली। अब तक फिल्में बनाने वाले भंसाली के लिए ओटीटी कोई नई बात नहीं लगती। उनके सीरीज के हर सीन में भंसाली के सिनेमा की छाप नजर आती है।

फ्रेम दर फ्रेम भंसाली

सेट्स हमेशा से उनकी खासियत रहे हैं। हीरामंडी का सेट का सेट भी कुछ इसी तरह का है। 1920 के लाहौर को और हीरामंडी को पत्थर की दीवारों से आकार दिया गया है। इनके अंदर झांकेंगे तो आपको छतों से लटकते बड़े-बड़े झूमर, एक्ट्रेस के एथनिक अटायर्स और गहने कई बार भंसाली की याद दिलाएंगे।

सेट बिल्डिंग और सेटअप के बाद, बात भंसाली के डायरेक्शन की भी होगी। किरदारों की एंट्री से हिसाब समझना शुरू करते हैं। सीरीज जब हमें Sharmin Segal Mehta यानी आलमजेब से पहली बार मिलवाती है तब, कैमरा छत से लटक रहा है, जिसके फोकस में एक बेड है जिस पर लाइटिंग इफैक्ट बाकी कमरे से अलग है।

इस बेड पर किताब से मुंह छिपाए हमारा किरदार लेटा हुआ है। अब किताब हटेगी और चेहरा दिखेगा। ऐसे इंट्रो पर सीटियां बेशक ना बजे ऑडियंस की वाहवाही जरूरी आती है।

ये सीन अकेला नहीं ऐसी कई सिचुएशन्स हैं। फिर चाहे वो आलम और ताज की पहली मुलाकात वाला सीन हो, क्लाईमैक्स में दीवार का दो तरफा सीन हो या मशालों के बीच लहराते तिरंगे वाला फ्रेम हो।

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ladies First

भंसाली पर बात हो ही रही है तो लगे हाथ उनके म्यूजिक पर भी बात हो जानी चाहिए। फिल्म का म्यूजिक उस दौर के हिसाब से रिलेवेंट है। म्यूजिक को फील करने वाले इसका दर्जा समझ सकते हैं लिरिक्स पर नाचने वाले इससे दूर रहें। बाकी अमीर खुसरो और निजामुद्दीन औलिया वाले गीत को चुनना, रिसर्च की काबिलियत दर्शाता है।

अगर सीरीज को नजरें गढ़ाकर देखेंगे तो पता लगेगा कि हीरामंडी फीमेल थीम पर बेस्ड है। सीरीज का पहला दृश्य महिलाओं से शुरू होता, फीमेल कैरेक्टर्स को मास टाइप एंट्रीज दी गई हैं, उनके इंट्रो सीन्स पर सीरीज की टाइमिंग ढील बरतती है और आखिर में उन्हें ही कहानी का हीरो भी अनाउंस करती है।

सीरीज के कैरेक्टर और कास्टिंग भी इसी थीम की ओर इशारा करते हैं। लीड रोल्स में तो फीमेल एक्ट्रेस हैं ही लेकिन मेल रोल्स में ऐसे एक्टर्स को कास्ट किया गया जो आसानी से एक्ट्रेस को ओवरशैडो ना कर सकें।

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सीरीज एक्टिंग के दम पर जिंदा है

इन एक्टर्स का कैरेक्टर बिल्डिंग भी बेहतरीन है। लगभग सभी किरदार ग्रे शेड वाले हैं। कब कौन किस तरफ झुक जाए या कब बाजी किसके हाथ आ जाए कहना मुश्किल है।

लेकिन एक्टर्स की एक्टिंग ने सीरीज के लेवल को आसमान की तरफ उठाया है। मनीषा कोइराला इनके किरदार और एक्टिंग में कितनी लेयर्स हैं, ये पता लगाना कठिन है। उनके किरदार के लिए हमदर्दी भी जागती है और बहुत सारी नफरत भी।

सोनाक्षी सिन्हा ने इस सीरीज से अपना शायद सबसे मेहनती कैरेक्टर पा लिया है। वे Lootera वाला लेवल क्रॉस कर चुकी हैं। Sanjeeda Sheikh ने सिचुएशनशिप वाले किरदार को मजबूती से निभाया है। रिचा चड्डा के पास जितना वक्त उसका उन्होंने बढ़िया यूज किया है।

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लेकिन सीरीज की एक्स फैक्टर Aditi Rao Hydari रहीं हैं। बिब्बो के किरदार ने उनकी एक्टिंग के हर डायमेन्शन को खंगाला है। Sharmin Segal Mehta की एक्टिंग ने अपने किरदार की अहमियत को समझा है और Taha Shah के साथ मिलकर आंखो ही आंखों में जो एक्टिंग की है, वो बहुत शानदार है। Taha के लुक्स पर भी काफी मेहनत की गई है। ये तीनों किरदार पॉजिटिव शेड्स में हैं।

उस्ताद जी के रोल में Indresh Malik, सायमा के रोल में Shruti Sharma और कुदसिया बेगम के रोल में Farida Jalal ने इम्पैक्ट छोड़ा है। नबावों में Adhyayan Suman ठीक लगे हैं। फ्रीडम फाइटर्स की टीम ने अच्छा काम किया है और अंग्रजों की क्रूरता भी खुलकर सामने है।

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GEM किसे कहते हैं ?

लेकिन ये किरदार और एक्टिंग को असरदार बनाने में डायलॉग्स ने मजबूती से काम किया है। Divya Nidhi, Vibhu Puri ने इन्हें लिखा है। ‘औरत के ख्वाब उसके सबसे बड़े दुश्मन होते हैं’, ‘असली मर्द औरत पर अपनी नजर भी इज्जत से उठाता है’ जैसे हाजिर जबाव संवादों से सीरीज भरी पड़ी है।

सीरीज की हीरामंडी के अलावा अगर कोई देना हो तो इसे तवायफ की मोहब्बत कहा जा सकता है। क्योंकि एक तवायफ का प्यार ही है जो पूरी सीरीज के तनाव को कायम करता है। लेकिन इसका अंत आजादी की उस लड़ाई के साथ होता है जिसे पुरुषवादी समाज ने इतिहास की तारीखों में आज तक जगह नहीं दी।

सीरीज में कुछ कमियां भी हैं। सबसे बड़ी कमी सुस्त चाल। हालांकि फिल्म के यूनिवर्स के लिहाज से स्लो पेस मैच करता है लेकिन कई जगहों कहानी बोरिंग भी होने लगती है। फ्लैशबैक में कहानी चली है लेकिन कुछ और ट्विस्ट और टर्न्स आते तो मजा आता। कई किरदार पूरी तरह से समेटे नहीं गए हैं इनमें लज्जो का किरदार, सायमा-इकबाल की कहानी शामिल है। बिब्बो का रोल जरूरी है लेकिन कम स्क्रीन टाइम इसे कमजोर बनाता है।

स्किप का ऑप्शन नहीं है

सीरीज स्किप नहीं की जा सकती, चाहे वजहें कुछ भी हों। साथ ही मेकर्स को सीखना चाहिए कि देशभक्ति वाली कहानियां हर बार पाकिस्तान को पीटकर नहीं बल्कि कुछ इस तरह भी दिखाई जा सकती हैं।

रिव्यू और भी हैं

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मैं सत्यम सिंघई पिछले वर्तमान में दैनिक भास्कर में काम कर रहा हूं। फिल्मों और बिंज वॉचिंग के साथ मैं पिछले 1-2 सालों से सिनेमा पर लगातार लिख रहा हूं।

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