Why Tollywood is called Tollywood : टॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री आज अपनी खतरनाक एक्शन वाली मास एंटरटेनर फिल्मों के लिए जानी जाती है। लेकिन टॉलीवुड हमेशा से तेलुगु फिल्मों के लिए ही नहीं जानी जाती थी। इससे तेलुगु से पहले एक और भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का नाम टॉलीवुड था। आइए जानते पूरी कहानी।

Why Tollywood is called Tollywood

आज के दौर में तेलुगु सिनेमा इंडस्ट्री को टॉलीवुड कहा जाता है। तेलुगु आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में बोली जाने वाली भाषा है। तेलुगु इंडस्ट्री का मुख्य केन्द्र हैदराबाद है। टॉलीवुड का नामकरण तेलुगु और हॉलीवुड इन दो शब्दों के मिक्सचर से हुआ है। ठीक बॉलीवुड की ही तरह।

बॉक्स ऑफिस के लिहाज से देखा जाए तो तेलुगु सिनेमा भारत की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है। साल 2023 में तेलुगु फिल्मों के 23 करोड़ से ज्यादा टिकट बिके थे। जो भारत में किसी भी सिनेमा इंडस्ट्री के लिहाज से सबसे ज्यादा थे।

Why Tollywood is called Tollywood

History of Telugu Film Industry
तेलुगु या टॉलीवुड सिनेमा की शुरुआत साल 1909 से मानी जाती है। जब रघुपति वैंकेया नायडू ने इस भाषा में शॉर्ट फिल्में बनाना शुरू कीं। उन्होंने भीष्मा प्रतिग्ना नाम से पहली फीचर फिल्म साल 1921 में बनाई थी। जिसके चलते उन्हें तेलुगु सिनेमा का फादर भी कहा जाता है।

तेलुगु भाषा में पहली बोलती फिल्म भक्त प्रहलाद 1932 में आई। इसे एच एम रेड्डी ने डायरेक्ट किया था। इस इंडस्ट्री को सही पहचान एनटी रामा राव और अक्नेनी नागेश्वर राव जैसे दिग्गज एक्टर्स के समय मिली। जिसे चिरंजीवी और नागार्जुन, वेंकटेश जैसे एक्टर्स ने आगे बढ़ाने का काम किया।

मौजूदा समय में भी तेलुगु एक्टर्स साउथ में ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय सिनेमा में डंका बज रहा है। महेश बाबू, प्रभास, पवन कल्याण, जूनियर एनटीआर, रामचरण, अल्लू अर्जुन, रवि तेजा, नानी और विजय देवरकोंडा जैसे एक्टर्स को आज हिंदी ऑडियंस द्वारा भी काफी पसंद किये जाते हैं।

Why Tollywood is called Tollywood

ये तो बात हुई तेलुगु इंडस्ट्री की। लेकिन खास बात ये है कि बंगाली फिल्म इंडस्ट्री को भी टॉलीवुड नाम से जाना जाता है। दरअसल 1930 के आसपास पश्चिम बंगाल के कोलकाता का टॉलीगंज सिनेमा इंडस्ट्री के लिए जाना जाता था। इसी टॉलीगंज और हॉलीवुड के मिक्सचर से इस इंडस्ट्री का नाम टॉलीगंज पड़ा।

History Of West Bengal Film Industry In Hindi

अंग्रेजों के शासन काल मे कोलकाता लंबे समय तक भारत की राजधानी रहा। जिसके चलते यहां सिनेमा इंडस्ट्री की शुरुआत हुई। बंगाल में पहला सिनेमा शो 1896-97 में हुआ। जो बॉम्बे में लुमियर ब्रदर्स के सिनेमेटोग्राफी के इंडक्शन के बाद हीरालाल सेन ने बनाया था।  

बंगाली सिनेमा की पहली फिल्म बिल्वमंगल थी जो राजा हरिश्चंद्र बनने के ठीक 6 साल बाद बनाई गई थी। इसे 1919 में हीरालाल सेन ने बनाया था। इस इंडस्ट्री का सुनहरा दौर 1950 के दशक में रहा। इसी दौर में सत्यजीत रे ने 1955 में पाथेर पांचाली बनाई। इस फिल्म को दुनिया भर से तारीफ मिली। कई फिल्म फेस्टिवल में इसकी स्क्रीनिंग हुई।

Father of Bengali film industry

धीरेन्द्र नाथ गांगुली को फादर ऑफ बंगाली सिनेमा कहा जाता है। गांगुली ने इंडो ब्रिटिश फिल्म कंपनी, ब्रिटिश डोमिनियन फिल्म्स और लोटस फिल्म कंपनी की स्थापना की थी। इसके अलावा उन्होंने पहली साइलेंट कॉमेडी फिल्म Bilat Ferat में बतौर एक्टर काम किया था। फिल्म 1921 में रिलीज हुई थी जिसे नीतीश लाहिड़ी ने डायरेक्ट किया था।

फिल्मों में आने से पहले धीरेन्द्र नाथ गांगुली ने रविन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन में पढ़ाई की थी। यहां से निकलने के बाद उन्होंने जेएफ मदन के साथ फोटोग्राफी शुरू की। फिर मदन थियेटर के मैनेजर नीतीश लाहिड़ी के साथ 1918 में इंडो ब्रिटिश फिल्म कंपनी बनाई। जिसका पहला प्रोडक्शन Bilat Ferat था। जिसके बाद उन्होंने दो और प्रोडक्शन हाउस खोले।

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धीरेन्द्र नाथ गांगुली को उनकी कन्टेम्पररी फिल्म्स के लिए जाना जाता है। उन्होंने Yashoda Nandan (1922), Hara Gouri (1922), Indrajeet (1922), Bimata (1923), Chintamani (1923), The Marriage Tonic (1923), Sati Simantini (1923), Vijay And Basanta (1923), Yayati (1923), Abhisarika (1938), Path Bhule (1940), Karmakhali (1940), Ahuti (1941), Daabi (1943), Srinkhal (1947), Shesh Nibedan (1948) और Cartoon (1949) जैसी फिल्में डायरेक्ट की। उन्हें सिनेमा में अपने योगदान के लिए 1974 में पद्म भूषण और 1975 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड दिया गया।

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मैं सत्यम सिंघई पिछले वर्तमान में दैनिक भास्कर में काम कर रहा हूं। फिल्मों और बिंज वॉचिंग के साथ मैं पिछले 1-2 सालों से सिनेमा पर लगातार लिख रहा हूं।

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