Peepli live Hindi Review : “सरकार की कौनो जोजना है. उसमे आत्महत्या करने वाले को सरकार 1 लाख रुपया मुआवजा देती है.” बुधिया और नत्था सबकुछ चुपचाप सुनकर वापस आ जाते हैं. बस इसी के इर्द गिर्द कहानी घूमती है. कौन करता है आत्महत्या ? किसे मिलता है मुआवजा? मिलता भी है या नहीं ! इन्हीं सवालों के जवाब देते देते फिल्म अपने साथ ढेरों छोटी बड़ी कहानियों को लेकर आगे बढ़ती है.

Peepli live Hindi Review

पीपली गांव के दो किसान नत्था और बुधिया के इर्द-गिर्द फिल्म चलती-फिरती है. दोनों भाइयों के कारनामों से घर के लोग परेशान हैं. पुस्तैनी जमीन की नीलामी की बात से कहानी शुरू होती है. फिर कुछ ऐसा ग़ज़ब करते हैं कि गांव के एकांत में दिल्ली की मीडिया का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. तब कहानी अपना रंग बदलना शुरू करती है. फिर क्या शासक और क्या प्रशासक एक-एक-कर सब हाजिरी लगाते हैं. हाजिरी की जगह होती है पीपली गांव के किसान नत्था का घर.

पूरी कहानी किसानो को बीच रखकर लिखी गई है. लेकिन देश की टीवी मीडिया की असल सच्चाई को भी बखूबी दिखाया है. पहले हम-पहले हम वाली टीवी मीडिया की लढ़ाई खुलकर दिखाई है. कहानी में नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के भी कपड़े उतरते दिखते हैं कि कैसे अपने फायदे के लिए ये लोग योजनाओं को बनाते- बिगाड़ते हैं.

Peepli live Hindi Review Plot

कहानी एकदम जमीनी है. गांव देहात की असल गालियां और उनमे गूंजती आवाजें; आँखों और कानो को भरपूर सुकून देती हैं. धूल खाती गलियों में गाड़ियों और पैदल चलते लोगों के अन्तर को बखूबी दिखाया है. मेहनत मजदूर किसान और कामचोर किसान को जहां-तहां दिखाकर पीपली जैसे गावों की असलियत दिखाई है. ऊंटों के संग-संग गुज़रती मोटरों और घरों में तनी डोरी पर लटकते कपड़े गांव को गांव बनाते हैं. किरदार भी अपनी हैसियत के हिसाब से भाषा और बोली को बदलते हैं. फर्राटेदार अंग्रेजी से लेकर देहात की ठेठ बोली में गरियाते किरदार एकदम असली लगते हैं.

Peepli live Hindi Review Story

नत्था (ओमकार दास मानिकपुरी) को कहानी का केंद्र कह सकते हैं. हत्या-आत्महत्या की कहानी इसी के इर्द-गिर्द चलती है. बुधिया ( रघुवीर यादव) जो कि नत्था का भाई है वही सारे फसाद की जड़ है, ऐसा नत्था की पत्नी मानती है. लोकल रिपोर्टर राकेश (नबाजुद्दीन सिद्दीकी) जो सब कुछ अच्छा करना चाहता है मगर अंत मे वही इस खेल का शिकार होता दिखाई पड़ता है.

नत्था की पत्नी धनिया (शालिनी वत्स) ही परिवार में समझदारी भरी बात करती है मगर उसकी अम्मा/सास (फारुख ज़फ़र) अक्सर उसे खरी-खोटी सुनाती रहती है. फिल्म के ज्यादातर किरदार थिएटर से थे या फिर आदिवासी ऐक्टर थे. इस कारण कहानी जमीनी रही..

Peepli live Hindi Review Cast & Crew

आमिर खान और किरण राव ने अनुषा रिजवी के निर्देशन में इसे आमिर खान प्रोडक्शन के तले प्रोड्यूस किया है. अनुषा ने ही इसका स्क्रीन प्ले और स्टोरी लिखी है. ये एनडीटीवी में पत्रकार रह चुकी हैं.

आत्महत्या के मसले को बाद में ठीक से नहीं लिखा गया. राजनीतिक पार्टियों द्वारा एकदम विपरीत बोलना मतलब आत्महत्या को बढावा देने को बोलना अजीब लगा. होरी महतो को थोड़ा और स्क्रीन टाइम देना था ताकि होरी और बुधिया जैसे किसानो की कहानी खुलकर सामने आ पाती. गांव को और भी वास्तविक दिखाया जा सकता था, खासकर बुधिया का घर. बीच बीच में कहानी भागती दिखाई दे रही थी

Peepli live Hindi Review

एकदम ग़ज़ब टाइप सिनेमा देखना हो तो देख लीजिए. मतलब थिएटर वाली ऐक्टिंग. मानो सबकुछ सामने बैठकर देख रहे हो. रघुवीर, फारुख, शालिनी की ऐक्टिंग जानदार है. नबाज, नसरुद्दीन के लिए भी देख सकते हैं. ऐक्टिंग से इतर इसकी कहानी कहने के अंदाज के लिए भी देख सकते हैं. बाकी नहीं देखने के लिए आप कुछ भी बहाने बना सकते हैं, जैसे 2010 की फिल्म है. वही किसान और उनकी समस्याओं को दिखाया है. कुछ नया नहीं है.

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