Haseen Dillruba Review : पंडित जी अपनी किताब में लिखते हैं- अमर प्रेम वही है जिसपे खून के हल्के हल्के से छींटे हों ताकि उसे बुरी नजर ना लगे। (ट्रेलर यहां देखें)
Haseen Dillruba Review
फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’ की कहानी को कम से कम शब्दों में कहा जाना हो तो यह संवाद काफी है। कहानी में प्रेम और बुरी नजर वाले कॉन्सेप्ट को खून के छींटों के साथ परोसा गया है जो मर्डर मिस्ट्री के साथ सस्पेंस थ्रिलर का भी भरपूर जायका देती है।
अगर आप रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड या फुटपाथिया बुक स्टोर पर बिकने वाले काले पन्नों वाले उपन्यास पढ़ने के शौकीन हैं। तो इस कहानी का भ्रमजाल आपके लिए है। यदि आप ऐसे उपन्यास नहीं पढ़ते तो यह कहानी आपको ये उपन्यास पढ़ने के लिए रुचि जगा सकती है।
Haseen Dillruba Review
कहानी में मुख्य किरदार यानी रिशू और रानी की भूमिका में विक्रांत मेसी और तापसी पन्नू है। हर्षवर्धन राणे, नील के किरदार में हैं। यामिनी दास और दयाशंकर उर्फ चालू पांडे ने रिशू के माता-पिता का किरदार निभाया है। आदित्य श्रीवास्तव aka अभिजीत, पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में हैं। आशीष वर्मा, मित्र अफ़ज़र की भूमिका में हैं।
कहानी को लिखा है कनिका ढिल्लन ने, संवाद अंकना जोशी के है। डायरेक्ट किया है विनिल मैथ्यू ने और संगीत अमित त्रिवेदी का है ।
कहानी स्थित है ज्वालापुर में। जहां रिषभ जो कि एक सीधे-सादे इंजीनियर हैं, निवास करते हैं। उनकी शादी दिल्ली की रानी से हो जाती जो जीवन को अपने ढंग से जीने में विश्वास रखती है। फिजिकल नीड्स इनके बीच दरार का काम करती है। तभी कहानी में प्रवेश होता है नील का जो लव ट्रायंगल बनाते हैं।
इन्हीं रिश्तों के उतार चढ़ाव के बीच एक जोरदार धमाका होता है जो कहानी को चोर-पुलिस के खेल की ओर मोड़ देती है। तो क्या हमारे अभिजीत सर इस बार भी अपना दिमाग लगाकर खूनी को पकड़ लेंगे या दिनेश पंडित के भ्रमजाल में उलझ कर रह जाएंगे? जवाब है सवा दो घंटे और नेटफ्लिक्स।
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कहानी की बात की जाए तो एकदम ताजा तरीन और आम जीवन से जोड़कर रखने वाली है।
फिल्म में रिश्ते पटरी से उतरते है लेकिन कहानी अपनी रफ्तार बरकरार रखती है और सवा दो घंटे तक दर्शकों को बांधे रखती है। लेकिन बीच में दिखाए गए डेली शोज के दांव पेंच इसे कमजोर करते हैं। लेकिन बीच बीच में यामिनी दास की कॉमिक टाइमिंग गुदगुदाने में कामयाब रहती है।
अभिनय की बात की जाए तो विक्रांत मेसी अन्य कलाकारों को बहुत पीछे छोड़ते नजर आते हैं। तापसी की डायलॉग डिलीवरी बेहतर है। हर्षवर्धन का कैमियो, प्लॉट में जान फूंकने का काम करता है।
वहीं दूसरी ओर सहयोगी कलाकार मात्र सजावट का सामान बनकर रह जाते हैं। आदित्य श्रीवास्तव, पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में मात्र नैरेटर बनकर रह जाते हैं, उन्हें ज्यादा परिश्रम का अवसर नहीं मिला है।
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कहानी का अंत वास्तविकता से बहुत दूर नज़र आता है और अंत से पहले ही दर्शक यह कयास आसानी से लगा सकता है कि ऊंट किस करवट बैठेगा?
बहरहाल, अगर छोटे शहरों की बड़ी साजिशों में दिलचस्पी है और आप बबलू पंडित या तापसी के फैन हैं तो हसीन दिलरुबा आपके सप्ताहांत को हसीन बना सकती है।
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