Fighter Hindi Review :आसमान के सीने को चीरते हुए अपनी बुलंद आवाज के साथ देखने वालों की रगों में सिहरन पैदा करते भारतीय वायुसेना के ये लोहे के पंख और उन्हें उड़ाने वाले जांबाज लड़ाके।

अगर आप दूरदर्शन वाली पीढ़ी से हैं तो आपने ऐसे वॉयस ओवर या कॉमेंट्री 26 जनवरी परेड के दौरान जरूर सुनी होगी। फिल्म फाइटर की कहानी भी वायुसेना के तेज आवाज वाले लड़ाकू विमानों से ही निकलकर आती है। ये आवाज लाउड है या दबी जुबान से, इसका फैसला किए देते हैं इसी रिव्यू में।

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इस वाली में कुछ कहानी भी है

फिल्म की कहानी शुरू होती है एयरफोर्स की एक कॉम्बैट टीम से। जिसको किसी स्पेशल मिशन के लिए तैयार किया जा रहा है। इनका बेस कश्मीर का श्रीनगर एयरबेस है। कॉम्बैट टीम अपनी ट्रेनिंग में बिजी रहती है इसी दौरान 14 फरवरी 2019 की तारीख आती है।

इस तारीख भारतीय सेना के काफिले पर कुछ आतंकवादियों द्वारा हमला कर दिया जाता है। कहानी अभी तक रियलिटी बेस्ड चलती है। हमले के जवाब में भारतीय एयरफोर्स की बालाकोट एयर स्ट्राइक होती है।

कहानी रियलिटी में तो यहां खत्म हो गई थी लेकिन फिल्म में एक सिरा छूट जाता है जो इंटरवल और क्लाईमैक्स के बीच की कहानी में है। इसे चाहें तो ट्विस्ट कह लें।

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हॉलीवुड का सस्ता कॉपी तो नहीं कर दिया

जब फाइटर का ट्रेलर आया तो लोगों ने कहा फिल्म टॉप गन मेवरिक जैसी फिल्मों की एक किस्म की नकल के साथ भारत पाकिस्तान वाला एंगल दिखाएगी। काफी हद तक इस बात को सही भी माना जा सकता था।

लेकिन फाइटर को दिखाने का अंदाज नया लगता है। बेशक इस तरह के एरियल एक्शन सीन हॉलीवुड में साइड लाइन मानें जाते हों लेकिन बॉलीवुड ऑडियंस के लिए ये कुछ नया वाली फीलिंग हैं। हां भारत पाकिस्तान वाले मोड़ आप चाहें तो भड़ास निकाल सकते हैं।

सिद्धार्थ आनंद की पिछली फिल्में जैसे पठान देखी जाए तो वे काफी हद तक ऑडियंस की नब्ज पकड़ चुके हैं। फिल्म का जमा जमाया टेम्पलेट है। लेकिन फिल्म एक मास एंट्री और एक कैमियो की कमी रह जाती है।

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कभी चढ़ती कभी सट्ट से उतरती कहानी

फिल्म बिल्ड अप के बाद तेजी से रफ्तार पकड़ती है जो इंटरवल तक चलती है। उसके बाद पेस एकदम स्लो हो जाता है। क्लाइमेक्स से ज्यादा एनर्जेटिक इंटरवल सीन लगता है।

फिल्म अगर कैरेक्टर या हीरो बेस्ड न होकर पूरी तरीके से टीम बेस्ड या आर्मी बेस्ड होती तो ज्यादा मजेदार लगती और फिर शायद लव स्टोरी दिखाने की भी जरूरत नहीं रहती लेकिन फिल्म मास एंटरटेनर है तो इसकी उम्मीद तो रहने ही दीजिए।

फिल्म का म्यूजिक ओके ओके ही है। हीर आसमानी, इंटरवल के बाद वाला सॉन्ग और BGM प्लस प्वाइंट में गिना जाएगा। फिल्म डायलॉग में मात खा जाती है। जहां तेज तर्रार और Goosebumps वाले डायलॉग चाहिए थे। वहां कुछ व्हाट्सएप वाली शायरियां माहौल खराब कर देती हैं।

ये बढिया था गुरु

फिल्म के कुछ अच्छे प्वाइंट्स भी हैं। दीपिका पादुकोण को केवल ग्लैमर के लिए बस ना रखकर उनके किरदार में कुछ जान डाली गई है, जो देखकर अच्छा लगता है। फिल्म के एरियल सीन्स अच्छे हैं इन्हें पर दांव खेला जा सकता है।

कुछ सब प्लॉट्स निराश करते हैं फिल्म का बैक स्टोरी में जाना बिल्कुल भी जरूरी या कनेक्टिंग नहीं लगता है। इसके अलावा लव स्टोरी के नाम फ्लो को खराब सा किया गया है। पायलट थोड़े से और प्रोफेशनल दिख सकते थे।

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एक्टिंग की बात करें तो ऋतिक रोशन ने मास मोमेंट्स को भुनाया है। लेकिन इसमें बैक एंड का भी क्रेडिट बनता है। उनके ड्रेस अप और लुक्स पर बढ़िया का किया गया। ब्लू यूनिफॉर्म में तो उनका लुक किलर लगा है।

दीपिका ने भी अच्छा साथ दिया है लेकिन उनका यूज और अच्छा हो सकता था। अनिल कपूर तो अलग लेवल पर खेल रहे हैं, वे एनिमल और द नाइट मैनेजर वाले कैरेक्टर में ही है।

निगेटिव रोल में ऋषभ साहनी डराते तो नहीं हैं लेकिन उनकी एक्टिंग बढ़िया है। उन्हें भी बेहतर ढंग से प्रेजेंट किया गया है। इसके अलावा स्पोर्टिंग कास्ट में अक्षय ओबेरॉय, करण सिंह ग्रोवर समेत सभी लोगों ने ठीक ठाक काम किया है।

क्या कीजिएगा टिकट के पैसे का

फिल्म मास एंटरटेनर के हिसाब से देखी जा सकती है। लेकिन पूरा दिमाग घर पर छोड़ जाने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ एरियल सीन्स को दिमाग के साथ भी देखना पड़ सकता है। बाकी कुछ ये तो यार जादा हो गया टाइप सीन्स के लिए तैयार रहना पड़ेगा। 

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मैं सत्यम सिंघई पिछले वर्तमान में दैनिक भास्कर में काम कर रहा हूं। फिल्मों और बिंज वॉचिंग के साथ मैं पिछले 1-2 सालों से सिनेमा पर लगातार लिख रहा हूं।

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