Dhak Dhak Movie Review: मंजिलों से ज्यादा रास्ते और रास्तों से ज्यादा साथी जरूरी होते हैं। बस ऐसे ही 4 साथियों के रास्ते की कहानियों को मंजिल तक पहुंचाने वाली फिल्म है, धक-धक। यहां इंजन से ज्यादा दिल की धक-धक सुनाई देगी। फिल्म सीधी सपाट होकर भी अनेक छोटी-बड़ी कहानियों से घिरी हुई है। इसमें चार औरतें दिल्ली से लद्दाख के खारदूंग-ला पास (दुनिया का सबसे ऊंचा पहाड़ी रास्ता) जाती दिखाई गई हैं। कैसे ये औरतें चाहे-अनचाहे इस सफर में शामिल होती हैं? रास्तों में किन मुश्किलों का सामना करतीं हैं? आखिरकार अपनी मंजिल को छूती भी हैं या नहीं, इन्हीं बिंदुओं के इर्द-गिर्द कहानी घूमती है।

सब किरदारों की अपनी कहानी
पंजाबी बोलता माही (रत्ना पाठक) का किरदार आपको बांध लेगा। उज्मा (दिया मिर्जा) कम बोलकर भी बेहतरीन उपस्थिति दर्ज कराती हैं। स्काय (फातिमा शेख) अपने किरदार के हिसाब से तेज तर्रार मगर नेकदिल दिखाई गईं हैं। लाली (संजना) की मासूमियत प्यारी है मगर कभी- कभी थकाती है। सब किरदार अपने साथ कहानियों की गठरी बांधे हैं। धीरे-धीरे सबकी गठरियां खुलती हैं। और तब एहसास होता है कि लेखक (पारिजात जोशी, अनविता दत्त) का असल मकसद खारदूंग-ला न जाकर इन लोगों की कहानियों को दिखाना है। किरदारों में संतुलन लाने की भरपूर कोशिश हुई है। तभी तो चारों की कहानी अलग होकर भी एक ही मोड़ से गुजरती हुई दिखाई पड़ती है।
 
क्लाइमैक्स मजेदार, ट्विस्ट की कमी
कम समय में ज्यादा कहानी दिखाने के कारण ट्विस्ट को लंबे समय तक बरकरार नहीं रख पाते हैं। हालांकि क्लाइमैक्स थोड़ा मजेदार लगता है मगर सब इतनी आसानी से सुलझता देख हताशा हाथ लगती है। समय बढ़ाकर थोड़े ट्विस्ट बढ़ाए जा सकते थे ताकि किरदारों के और भी हिस्से खुलते दिखाई पड़ते। पहाड़ों के अच्छे दृश्य, मोटरसाइकिल चलातीं अलग-अलग उम्र की औरतों और इनके पीछे की नई-पुरानी कहानियां देखने के लिए आप फिल्म जरूर देख सकते हैं। लेकिन तड़कती-भड़कती रोमांच से भरी बाइकिंग स्टोरी सोचकर देखने पर निराशा ही हाथ लगेगी।

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