Chandu Champion Review : ” सपना तब खत्म होता है जब हम उसे देखना बंद कर देते हैं। ” ‘
सपने और जद्दोजहद से जुड़ी ऐसी ही एक कहानी Chandu Champion है, जो सिनेमाई पर्दे पर एक टिकट के बदले चलाई जा रही है। ट्रेलर यहां देखें।
Chandu Champion Review
कहानी चंदू…मतलब ?
Chandu Champion की कहानी महाराष्ट्र के सांगली के कराड स्टेशन से शुरू होती है। जहां भारत के पहले इंडिविजुअल ओलंपिक मेडलिस्ट केडी जाधव का घर लौटने पर जोरदार स्वागत किया जा रहा है।
इस भव्य स्वागत को देखकर अपने भाई के कंधे पर चढ़ा मुरलीकांत पेटकर भी सपना देख लेता है, ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने का। फिर स्कूल की कक्षाओं समकोण और त्रिभुज की बजाय बनाने लगता है, ओलंपिक के 5 छल्ले।
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इस सपने की पहली सीढ़ी बनती है गांव की कुश्ती, दूसरी आर्मी की भर्ती और तीसरी 65 की जंग। इन्हीं सीढ़ियों को चढ़ते – चढ़ते मुरलीकांत का पांव इंटरवल तक फिसल जाता है।
कहानी का दूसरा हाफ लड़खड़ाते कदमों को संभालने और इस बार दोगुनी ताकत से मंजिल की तरफ बढ़ जाने के लिए शुरु होता है। अंत वही होता है जो हर स्पोर्ट्स बायोपिक में होता है।
इससे ज्यादा कहानी सुनना है तो इसके लिए अलग से आर्टिकल है क्लिक करके पढ़ सकते हैं – Chandu Champion Trailer आ गया, असली कहानी यहां पढ़ लीजिए
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मसाला थोड़ा कम है…
Chandu Champion के रिव्यू की बात की जाए तो फिल्म एकदम बिना ज्यादा मसाले वाली बायोपिक फिल्म है। फिल्म सीन दर सीन, सीक्वेंस वाइज कट टू कट चलती है। क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर डायरेक्टर ज्यादा कुछ नहीं करते क्योंकि उनके पास दिखाने को पर्याप्त घटनाएं मौजूद हैं।
लेकिन… भारत में स्पोर्ट्स बायोपिक का जो फार्मूला है वो ज्यादातर क्रिएटिव लिबर्टी पर ही फोकस करता है। क्योंकि अगर सीधी सीधी कहानी ही देखनी होती तो दर्शक किताब न पढ़ लेता। यहां दर्शक को चाहिए मसाला जो बहुत कम है। स्पोर्ट्स पर ज्यादा फोकस है। वॉर सीक्वेंस है लेकिन बेहद नकली टाइप।
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डायरेक्टर साहब ध्यान दें…
डायरेक्टर Kabir Khan ने इससे पहले 1983 की विश्व विजेता क्रिकेट टीम पर बायोपिक बनाई थी। फिल्म खेल के मैदान में ज्यादा चली थी, उसके इतर की कहानी पर काफी कम। शायद यही कारण था कि फिल्म कमर्शियली उतनी हिट नहीं रही।
इसी तरह का दोहराव Chandu Champion के साथ देखने को मिलता है। फिल्म स्पोर्ट्स हाइलाइट ना रहे बल्कि इमोशनली कनेक्टेड भी रहे इसका ध्यान डायरेक्टर साब को रखना चाहिए था।
फिल्म की दूसरी बड़ी कमी इसकी बड़ी लेंथ लगती है। पहले और दूसरे हाफ में कौन सा ज्यादा खींचा हुआ है, ये तय करना ऑडियंस के लिए चैलेंज है। इसे थोड़ा ट्रिम किया जाना चाहिए था।
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Chandu Champion का म्यूजिक कुछ ज्यादा खास नहीं है। कहानी को पेस देने के लिए गाने को जबरदस्ती डाले हुए लगते हैं। कुछ गाने भी होते तो चल सकता था।
स्क्रीनप्ले सही कहा जा सकता है लेकिन लेखन में घटनाओं में थोड़ा सा और क्रिस्प डाला जाता तो मजा आ सकता था। आप कहानी के तौर पर मुरलीकांत पेटकर से रिलेटेड तो कर पाएंगे लेकिन मसाला स्पोर्ट्स ड्रामा देखने की चाह कमजोर होती रहेगी।
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एक्टिंग चैंपियन इसलिए है …
फिल्म का सबसे बड़ा प्लस है Kartik Aaryan की एक्टिंग। उनके पास सपोर्टिंग रोल्स के सपोर्ट की काफी कमी है। ऐसे में कहानी पूरी तरह से उन पर डिपेंड करती है। उन्होंने इसे निभाया भी बखूबी है। चाहे व्हीलचेयर पर बैठकर मजबूर दिखना हो या रिंग में उतरकर जुनूनी, हर तरीके से उन्होंने बेहतर काम किया है।
सपोर्टिंग रोल में Vijay Raaz को देखना हमेशा की तरह दिलचस्प है। Vaibhav Arora ने भी अच्छा साथ दिया है। Yashpal Sharma, Rajpal Yadav और अन्य सपोर्टिंग कास्ट का काम भी ठीक-ठाक है।
कहानी अच्छी है लेकिन कुछ ट्विस्ट एंड टर्न्स और इंगेजिंग मोमेंट्स क्रिएट कर लिए जाते तो शायद इसे और अच्छे से दिखाया जा सकता था। जिससे शायद ज्यादा दर्शक इससे कनेक्ट कर पाते।
रिव्यू और भी हैं
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बात Rockstar की हो रही है। फिल्म को पिछले दिनों फिर से सिनेमा घरों के बड़े पर्दे पर सजाया गया। पहले हिंदी फिल्म साइलेंट थीं, फिर उनमें आवाज और संगीत आया, और जो Rockstar में दिखाया गया है उसे कहते हैं म्यूजिकल ड्रामा।