Maharani 3 Hindi Review : बिहार और बिहार की राजनीति इस जितना लिखा पढ़ा गया है अभी उतना और भी पढ़ा लिखा जाना बाकी है। ये लाइन किसी पॉलिटिकल सटायर की रूप रेखा बनाने के लिए नहीं लिखी बल्कि यह बताने के लिए लिखी गए है कि बिहार की राजनीति पर बेस्ड वेब सीरीज Maharani का तीसरा सीजन अब सोनी लिव पर देखा जा सकता है।

Maharani 3 Hindi Review

कहानी लगभग वैसी ही है…

सीरिज की कहानी शुरू हो उससे पहले पिछले दो सीजन का हाल जानना जरूरी है। पहले सीजन में बिहार के सीएम भीमा भारती पर जानलेवा हमला होता जिसके बाद वे अपनी पत्नि को सीएम बनाते हैं और पत्नी रानी भारती सीएम बनकर भीमा के खिलाफ जांच करके उसे जेल भेज देती है।

दूसरे सीजन में भीमा बाहर आता है और अपनी सत्ता पाने की कोशिश करता है। बाद विरोधियों के जाल में फंसकर मारा जाता है। जिसके इल्जाम में रानी भारती जेल पहुंच जाती है।

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तीसरे सीजन में रानी भारती जेल में है। यहां नवीन कुमार गिरते पड़ते जूझते हुए सरकार चला रहा है। पहले एपिसोड के इंट्रो के बाद कहानी अगले दो तीन एपिसोड के लिए शराबबंदी और उसके इर्द गिर्द चल रहे नकली शराब के बिजनेस पर बेस्ड हो जाती है।

इसके बाद सिलसिलेवार दो चार हत्याएं होती हैं। तब तक रानी भारती जेल से बाहर आ चुकी होती और फिर वही राजनीति की पुरानी बिसात पर कुछ नईं तो कुछ पुरानी बाजी चलना शुरू हो जाती हैं।

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शुरूआत अच्छी थी…

सीरीज की शुरुआत अच्छे पेस और एक फ्रेश प्लॉट के साथ शुरू होती है। पहले और दूसरे एपिसोड के खत्म होते होते कहानी अच्छे क्लिफ हैंगर पर भी छोड़कर जाती है। लेकिन उसके बाद कहानी मिडिल में जाकर फंस जाती है। यहां वही सब कुछ दिखाया जाता है जो लगभग हर पॉलिटिकल वेब सीरीज में दिखाया जाता है।

यहां तक कि महारानी के पिछले दो सीजन तक में भी कुछ इसी तरह की कहानी चली थी। जहां एक तरफ पॉलिटिक्स चल रही है साथ में पर्दे के पीछे एक जांच चल रही है।

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लगता है पुराना वाला लगा दिये…

पहले सीजन में ये काम Imamulhaq ने किया था वहीं दूसरे और तीसरे सीजन में Dibyendu Bhattacharya ने ये काम पूरा किया। एक ही पैटर्न एक बार चलता है, बार बार नहीं चलता।

इस उधेड़बुन के बाद जब तक रानी भारती बाहर आती हैं तब तक आप बोर सा होने लगेंगे। हुमा कुरैशी कुछ प्लॉट ट्विस्ट जरूर लाती हैं, जो अच्छे भी हैं लेकिन और बेहतर लग सकते थे अगर सीरीज फ्लो में चलती रहती। इस बीच एक उपचुनाव का झोंका भी आती है लेकिन उसे भुनाया नहीं गया है।

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राजनीति तो दर्शकों के साथ हो गई

अक्सर राजनीति की कहानियां चुनाव पर टिकी होती है लेकिन ये बिहार है तो बिना चुनाव के भी सरकारें पलट जाती हैं। बीच में कुछ ऐसा ही होता है और फिर सब कुछ आइडियलिज्म की तरफ बढ़ता है।

कहानी फिर से चौंकाने वाली वाले ट्विस्ट के साथ खत्म होनी चाहती है लेकिन उसके पहले घटने वाली कहानी इसे कमजोर सा कर देती है।

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Huma Qureshi की एक्टिंग अच्छी है लेकिन पिछले दो सीजन के मुकाबले इस बार उनका किरदार कम इफेक्टिव नजर आता है। Amit Sial अच्छे लगे हैं हालांकि उनका किरदार भी लेयर्ड नजर नहीं आता।

Vineet Kumar और उनकी बाहुबली टुकड़ी में केवल दिलशाद मिर्जा बने Danish Iqbal ही है जो अपनी छाप छोड़ते हैं। उनके अलावा सब केवल देखने दिखाने के हैं। Anuja Sathe ना भी होतीं तो काम चल सकता था।  

Dibyendu Bhattacharya, Pramod Pathak और Kani Kusruti उस एंप्लॉय की तरह हैं जिसे सैलरी दी जा रही है लेकिन उनकी क्षमता के हिसाब से काम नहीं लिया जा रहा।

देखना है तो देख लो समय आपका है हालांकि ऐसे कन्टेंट से तो ओटीटी भरा पड़ा ही है।

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