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    Mirzapur 3 Review : किरदारों की और मजबूत कहानी की कमी

    तीसरे सीजन के पास पुराने और जमे हुए किरदारों को ज्यादा एक्सपोज करने का स्पेस नहीं है। इसलिए कहानी नए किरदारों पर आ टिकी है।
    Satyam SinghaiBy Satyam SinghaiJuly 6, 20246 Mins Read
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    Mirzapur 3 Review
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    Mirzapur 3 Review – विरासत, वर्चस्व की होती है, व्यक्ति की नहीं / (ट्रेलर यहां देख लो)

    वर्चस्व और विरासत की लड़ाई वाली वेब सीरीज मिर्जापुर के तीसरे सीजन का फीता कट चुका है। 10 एपिसोड और साढ़े आठ घंटे की भारी भरकम लैंथ वाली इस सीरीज का बांध प्राइम वीडियो ने खोल दिया है।

    पिछले दो सीजन के रीकेप के बाद कहानी लखनऊ के एक विद्युत शवदाह गृह पर आ टिकती हैं। जहां अंतिम अग्नि के एकदम निकट लेटे हैं प्रिंस ऑफ मिर्जापुर यानी मुन्ना भैया।

    Mirzapur 3 Review : प्लॉट्स…बहुत सारे प्लॉट्स

    अगले कुछ पलों में मुन्ना भैया को अग्नि के हवाले कर कहानी ट्रैक पर दौड़ने लगती है। इस बार कहानी कई फ्रंट पर खुलती है। पहला फ्रंट खुलता प्रदेश की मुखिया माधुरी यादव की तरफ जो भय मुक्त प्रदेश की तरफ बढ़ रही हैं।

    दूसरा सिरा गुड्डू पंडित की तरफ खुल रहा है जो पूर्वांचल की गद्दी के पशोपेश में कई विरोधियों से घिरे खड़े हैं। एक हिस्सा पड़ोसी राज्य बिहार में दद्दा और छोटे-बड़े की अबूझ पहेली में अटका पड़ा है।

    Mirzapur 3 Review : इतना ही नहीं, और सुनिए

    कुछ जड़ें जेल के अंदर से कोर्ट रूम तक निकलती हैं। जिसके केंद्रबिंदु रमाकांत पंडित और लाला हैं। एक टुकड़ा प्रशासन और पुलिसिया तबके का है। इन सबके बीच शरद सिपहसलारों की दम गद्दी के एक और ध्रुव बनने की कोशिश मे हैं। इस भागदौड़ की एक डोरी लाला और उसकी बेटी शबनम ने भी थाम रखी है।

    कहानी का कुल जमा यही है कि तीसरा सीजन गुड्डू पंडित का गद्दी के लिए अश्वमेध है और इस घोड़े पर लगाम कसने के लिए कई विपक्षी पटे पड़े हैं। जिस पर गुड्डू का एक ही प्रतिकार है,  बंदूक से तेज आवाज से निकलती गोली।

    Mirzapur 3 Review : मजबूत किरदार ?

    एक बेहतर कहानी के लिए जरूरी है बेहतर किरदार। Mirzapur 3 Review भी इसी लाइन पर शुरू होगा। मिर्जापुर के बीते दो सीजन का अंत कुछ बड़ी बड़ी हत्याओं के साथ हुआ था। ऐसे में अगले सीजन के लिए उन किरदारों की जगह खाली हो गई थी।

    पहले सीजन पर आएं तो यहां बबलू पंडित की मौत हो गई। कहानी तीसरे सीजन तक आ गई है लेकिन उनके कद वाला किरदार अभी तक नजर नहीं आता। गोलू जरूर बबलू की जगह लेने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन बबलू जैसा बनने के चक्कर में वे ठीक तरह से गोलू भी नहीं निभा सकी हैं। मुन्ना भैया का जाना भी बड़ा गैप क्रिएट करता है।

    तीसरे सीजन के पास पुराने और जमे हुए किरदारों को ज्यादा एक्सपोज करने का स्पेस नहीं है। इसलिए कहानी नए किरदारों पर आ टिकी है।

    Mirzapur 3 Review : नए घोड़ों पर दांव

    माधुरी का किरदार निभा रहीं Isha Talwar जो पिछले सीजन में सेकेंडरी कास्ट का हिस्सा थीं। अब आगे आकर मुख्य पॉइंट बनने की कोशिश में लगी हुईं हैं। इसी तरह का हाल शरद बाबू यानी Anjum Shukla के साथ भी है।

    दूसरी तरफ इस बार कहानी वीना, रॉबिन, छोटे-बड़े, जेपी जैसे मंझे हुए किरदारों को भी ठीक ढंग से यूज करने में विफल  रही है।

    वेब सीरीज के बारे मे कहा जाता है कि इनके सब प्लॉट्स जितने मजबूत होते हैं इनका इफैक्ट उतना ही बढ़ता है। लेकिन इसमें एक बात और एड करनी चाहिए, छोटे-छोटे साइड कैरेक्टर्स के रोल की।

    पिछले दो सीजन में ये किरदार यादगार और अच्छे थे। लेकिन इस बार ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि वाल्मीकि यादव के किरदार को छोड़कर अन्य किसी को भी याद नहीं रखा जा सकता।

    Mirzapur 3 Review : खत्म कब होगा

    एक बात और है कि कहानी इस बार राजनीति और दिमागी ज्यादा हो गई है जबकि मिर्जापुर जमीन पर उतरकर एक्शन करने के लिए जानी जाती थी।

    सीरीज की एक और कमजोर कड़ी इसकी डैडी लेंथ है। साढ़े आठ घंटे एक ही जॉनर को कैरी करना कठिन है। जब आपका स्क्रीनप्ले सुस्त टाइप हो। कहानी पहले चार एपिसोड तक तो मात्र प्लॉट ही बिल्ड करती है। सबसे पेस वाला एपिसोड तो आखिरी ही होना चाहिए।

    फिल्मांकन को पूरे नंबर मिलेंगे। जिस तरीके से ड्रोन से लेकर वॉकिंग और एक्शन सीक्वेंस फिल्माए गए हैं, स्क्रीन पर हलचल पैदा करते हैं।

    Mirzapur 3 Review : इसमें मजा आया…

    कुछ सीन्स की बनावट पर राइटिंग की तारीफ बनती है। खास हत्या वाले ब्रूटल सीन्स में। इससे ज्यादा कहना स्पॉइलर होगा। शुरुआत में आने वाला गोलू का पैदल चेजिंग सीन बहुत बेहतरीन दिखता है।

    डायलॉग ठीक ठाक ही हैं। लेकिन कॉमिक टाइमिंग में कमजोरी है, जो शायद USP रही है। इंटिमेसी और अपशब्दों में लिमिटेशन है।

    Mirzapur 3 Review : अभी खत्म नहीं हुआ

    एक्टिंग गुड्डू पंडित के पास असला है लेकिन दागना किस पर है पता नहीं। कालीन भैया कुछ देर के लिए हैं इफैक्टिव भी हैं। माधुरी और शरद एक ही तरह के एक्प्रेशन्स पर फिल्म निकाल देते हैं। रमाकांत पंडित के पास सही लगते हैं। इसके अलावा कुछ छोटे और नए किरदार है जिनको स्क्रीन पर देखकर मजा आता है। 

    ये सीजन देखने भर का तो है। आगे और भी सीजन आने वाले हैं। बाकी मुझे ऐसा लगता है कि आने वाले सीजन में पुराने किरदारों में से किसी की वाइल्ड कार्ड एंट्री करानी पड़ेगी अगर लेगेसी बनाए रखनी है तो।

    रिव्यू और भी हैं…

    Kota Factory 3 Review : अपने ही फॉर्मूले में उलझा तीसरा सीजन

    Kota Factory 3 Review
    Kota Factory 3 Review

    पहला सीजन जहां ऑर्गनाइजर था तो वहीं दूसरे सीजन में स्ट्रगल दिखाया गया था। अब तीसरे सीजन में बारी है अटैम्पट की। पांच एपिसोड बारी-बारी से गुजरते हैं।

    जीतू भैया Aimers से गायब हैं। कारण है डिप्रेशन। पिछले सीजन की घटनाएं अभी भी जीतू भैया की मेंटल हेल्थ को सता रही हैं। जिसका इफैक्ट जीतू भैया और जीतू सर वाले बारीक रेखा को ब्लर करने का काम कर रही हैं। पूरा रिव्यू पढें…

    Animal Hindi Review – वायलेंस और इमोशन की खतरनाक भसड़

    Animal Hindi Review
    Animal Hindi Review

    फिल्म की कहानी बाप-बेटे के रिश्ते की है। जिसमें बेटा Ranbir Kapoor और पिता Anil Kapoor हैं। पिता बड़े उद्योगपति है जिनके पास लमसम पैसा है, गाड़ी है, सब कुछ है. नहीं है तो सिर्फ समय, न परिवार के लिए ना अपने बेटे के लिए।

    और बेटा ऐसा जिसके लिए उसके पिता ही सबकुछ हैं। बाप-बेटे की तकरार के बीच, विलेन की तरफ से बाप के सीने के हवाले दो गोलियां कर दी जाती हैं। और फिर कहानी निकल पड़ती है रिवेंज ड्रामा और इमोशनल कनेक्ट की लंबी यात्रा पर। पूरा रिव्यू पढें…

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    Satyam Singhai
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    भारतीय सिनेमा और मनोरंजन की दुनिया में छुपी कहानियों को शब्दों में पिरोने वाले लेखक। बीते 3 सालों से एंटरटेनमेंट बीट पर काम कर रहे हैं। हर फिल्म, स्टार और अनसुने किस्सों को रोचक अंदाज में पेश करते हैं, जो पाठकों को सिनेमा के जादुई सफर पर ले जाता है।

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