Vanvaas Hindi Review : अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी और सलमान खान की फिल्म है बागवान। आज भी फिल्म जब भी टीवी पर आती है GenZ वाली पीढ़ी चैनल पलट देती है।
वजह है फिल्म का कॉन्सेप्ट जो ऐसे बच्चों पर बेस्ड है जो अपने बुजुर्ग माता-पिता को बुढ़ापे में अकेला छोड़ देते हैं।
कमोबैश इसी तरह के प्लॉट पर बनी है, इन दिनों सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म Vanvaas. फिल्म में Nana Patekar, Utkarsh Sharma लीड रोल में हैं। फिल्म के गदर के डायरेक्टर Anil Sharma ने डायरेक्ट किया है।
Vanvaas Hindi Review : नए बच्चे और पुराने मां-बाप
नाना पाटेकर एक ऐसे पिता की भूमिका में हैं जिनकी पत्नी का निधन हो गया है और वे डिमेंशिया से पीड़ित हैं। उनके बच्चे उन्हें वाराणसी में छोड़ देते हैं और उन्हें मृत घोषित कर देते हैं ताकि उनकी संपत्ति हड़प सकें।
बनारस में उन्हें वीरू यानी उत्कर्ष शर्मा मिलता है जो न सिर्फ उनकी देखभाल करता है बल्कि उनके बच्चों से मिलवाने में भी मदद करता है।
Vanvaas Hindi Review : इमोशनल ड्रामा में इमोशन की कमी
फिल्म की कहानी को पुराना तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि आज भी कई लोग अपने पैरेंट्स के साथ ऐसा कर रहे हैं। लेकिन फिल्मी दुनिया में ऐसी कहानी पहले भी कई अलग-अलग ढंग से सुनाई जा चुकी है।
वनवास पर लौटें तो फिल्म की कहानी मजबूत इमोशनल प्लॉट की कमी से जूझ रही है। सब्जेक्ट जितना सेंसिटिव है डायेक्टर स्क्रीन पर उतने बेहतर ढंग से उतार नहीं पाए हैं।
यहीं कारण है कि नाना पाटेकर और उत्कर्ष के बीच की केमेस्ट्री में कुछ खास इंटरेस्ट पैदा नहीं होता है। इसे राइटिंग और डायरेक्शन की गलतियों में गिना जा सकता है। इमोशनल सीन थोड़े और बेहतर हो सकते थे।
Vanvaas Hindi Review : देखने लायक चीजें कम हैं
इसी तरह की कमी फिल्म के संवादो में भी देखी जा सकती है। एक इमोशनल ड्रामा फिल्म से उम्मीद की जाती है कि उसके डायलॉग ऑडियंस के मन में घर कर जाएं , लेकिन वनवास के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है।
फिल्म के सब प्लॉट में एक लव स्टोरी भी चल रही है, लेकिन कहानी की रिलेवेंसी के हिसाब से न इसकी जरूरत है और न ही ये इफेक्टिव है।
फिल्म की ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम इसी 2 घंटे 40 मिनट लंबी लेंथ करती है। फिल्म का पेस स्लो और हर मौके पर फिल्म दर्शक के सब्र की परीक्षा लेते है और अंत तक दर्शक फेल हो जाता है।
Vanvaas Hindi Review : राजपाल यादव दिग्गजों में बेहतर
फिल्म का सबसे अच्छा पॉइंट राजपाल यादव की एक्टिंग और कॉमिक टाइमिंग कही जा सकती है। वे बीच-बीच में आकर डेड प्लॉट में जान डालने की कोशिश करते हैं, लेकिन ये काफी नहीं है।
नाना और उत्कर्ष निराश करते हैं। नाना अपने किरदार में बिना इमोशनल शेड के परोसते हैं, जो कमजोर लगा है। इसके अलावा उत्कर्ष और अश्विनी कलेसकर की एक्टिंग में कुछ खास नहीं है।
कुल मिलाकर फिल्म आज के दौर से काफी पीछे की है। डायरेक्टर को याद रखना चाहिए था कि आज की ऑडियंस फैमिली ड्रामा खास पसंद नहीं करती है।
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