Kaagaz 2 Hindi Review : साल 2021 में फिल्म Kaagaz आई थी। जिसमें Pankaj Tripathi Satish Kaushik और Monal Gajjar बतौर लीड एक्टर नजर आए थे।
फिल्म में एक ऐसे शख्स की कहानी दिखाई गई थी जिसे सरकारी कागजों में मरा हुआ बता दिया जाता है। खुद को जिंदा साबित करने और सिस्टम से लड़ना ही फिल्म का प्लॉट है। फिल्म सच्ची घटना पर बेस्ड थी।
Kaagaz 2 Hindi Review
अब फिल्म का सीक्वल आया है। फिल्म के दोनों हिस्सों को बस एक ही चीज जोड़ती है वो दिवंगत अभिनेता Satish Kaushik. सतीश पिछली फिल्म में डायरेक्टर और स्पोर्टिंग रोल में थे जबकि इस फिल्म में लीड में है।
इस बार की कहानी भी कुछ ऐसे ही है। सतीश कौशिक के किरदार की बेटी एक एक्सीडेंट में घायल हो जाती है। अस्पताल ले जाते वक्त कार एक पॉलिटिकल रैली में फंस जाती है और इलाज में देरी की वजह से उसकी मौत हो जाती है।
जिसके बाद फिल्म में सिस्टम से लड़ाई शुरू हो जाती है और केस कोर्ट में पहुंचता है। जहां मौत के न्याय से शुरू हुई कहानी आम आदमी वर्सेज राजनीति का हो जाता है। इसे सुलझाने Anupam Kher वकील के किरदार में पहुंचते हैं।
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जब कभी भी सिस्टम वर्सेस कॉमन मैन वाले ढांचे पर फिल्म बनती है तो जरूरी होता है कि दर्शक कॉमन मैन के गम पर आंसू बहाए और जब कॉमन मैन असहाय लगे तो दर्शक भी सीट पर खुद को जकड़ा हुआ महसूस करे। Kaagaz 2 इन दोनों में मामलों में काफी हद तक सफल मानी जा सकती है।
फिल्म की कहानी थोड़े से स्लो पेस के साथ शुरू होती है जब तक कि सतीश कौशिक की एंट्री नहीं होती। Darshan Kumar वाले सीक्वेंस को थोड़ा छोटा करके सतीश की एंट्री थोड़े पहले हो जाती तो दर्शक जल्दी कनेक्ट कर सकता था।
इंटरवल से पहले कहानी प्लॉट की हाइप तक पहुंच जाती है। ऐसे में इंटरवल सीरियस नोट पर ही खत्म होता है। दूसरे हाफ का ज्यादा हिस्सा कोर्ट के भीतर गुजरता है।
कोर्ट की बहस रोचक है जो साथ ही साथ कुछ ऐसे पहलुओं को भी उठा देती है जिन पर कम बात की जाती है। फिल्म में सोशल मीडिया का पावर दिखाने की कोशिश भी है लेकिन वो सब इतना बार देखा जा चुका है कि अब रियल नहीं लगता।
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क्लाइमेक्स इंपैक्टफुल और अपीलिंग दोनों है। हालांकि रियलिज्म थोड़ा सा हावी होता नजर आता है जिसे कहा जा सकता है इतना तो चलता है।
हालांकि फिल्म में दर्शन के हिस्से में दिखाए एक्शन सीन्स गैर जरूरी लगते हैं। इस तरह की फिल्म में इन सीन्स से बचा जा सकता था। फिल्म में गाने भी कई जगह कहानी को उलझाने का काम करते हैं।
स्क्रीनप्ले ठीक ठाक कहा जा सकता है। डायलॉग अच्छे हैं। फिल्म को VK Prakash ने डायरेक्ट किया है जहां बड़े क्रिटिक थोड़ी कमियां निकाल सकते हैं।
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एक्टिंग की बात कर ली जाए तो सतीश कौशिक फिल्म का सेंट्रल पॉइंट, टर्निंग पॉइंट जो आप कहना चाहे वो सब हैं। उन्होंने जिस ढंग से इस सीरियस कैरेक्टर को पकड़ा है उसे देखकर केवल सेंसटिविटी को फील किया जा सकता है। पहले हाफ में एक्सीडेंट के बाद जिस तरह से वो जाम हटाने के लिए लोगों से, पुलिस से और पॉलिटिशियन से रिक्वेस्ट करते हैं वह देखने लायक है।
इसके अलावा अनुपम खेर जबरदस्ती के डायलॉग और चीखने चिल्लाए बिना एकदम सही तसल्ली से वकील के किरदार को पर्दे पर रखते हैं। सतीश कौशिक के साथ उनकी जुगलबंदी ठीक लगी है।
इसके अलावा Neena Gupta, Darshan Kumar, Smiriti Kalra और Anang Desai ने भी अपने अपने किरदारों को बढ़िया ढंग से निभाया है।
कुल मिलाकर फिल्म बिल्कुल देखी जा सकती है। हालांकि इस हफ्ते ऑप्शन बहुत हैं तो जेब आपका और खर्च आपका।
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