Emergency Hindi Review : इंदिरा गांधी देश की जितनी ताकतवर प्रधानमंत्री थीं उतना ही विवादित माना जाता है उनका इमरजेंसी का फैसला।
इमरजेंसी और इंदिरा के इर्द-गिर्द कई फिल्में बनी, इनमें से बहुत सी फिल्मों पर विवाद भी हुए। हाल ही में कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी लंबे विवादों और रिलीज डेट पोस्टपोन होने बाद आखिरकार थिएटर में रिलीज हो चुकी है।
यहां हम राजनीति और विवादों से दूर, सिनेमा को आगे रखकर जानेंगे कि फिल्म कैसी है।
Emergency Hindi Review : इंदिरा गांधी की बायोपिक है
फिल्म की शुरुआत एक युवा इंदिरा गांधी के अपने दादा से राजनीति की ABCD सीख रही होती है। इसी बीच एक झलक देश की आजादी की दिखाई जाती है। फिर कहानी 1962 के इंडो-चाइना वॉर पर पहुंचती है,जहां इंदिरा की भूमिका को हाइलाइट किया जाता है। इसके बाद पिता नेहरू की मौत, शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने और आखिर में इंदिरा के प्रधानमंत्री बनने के सीन सामने आते हैं। ।
इसके बाद अगले दो घंटे में 1971 के भारत-पाक युद्ध, बांग्लादेश की स्वतंत्रता, भारत-सोवियत संधि, शिमला समझौता, पोखरण परमाणु परीक्षण, और विपक्ष के विरोध के कारण इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध जैसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम दिखाए गए हैं।
इसके चलते आपातकाल लागू करने का उनका फैसला भी सामने आता है। हालांकि, इस दौरान विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, मीडिया पर पाबंदी, और जबरन नसबंदी जैसे मुद्दों को केवल सतही तौर पर दिखाया गया है।
कहानी तेजी से आगे बढ़ती है, जहां इंदिरा गांधी चुनाव हारती हैं, जनता पार्टी उभरती है। तिहाड़ जेल में समय बिताने के बाद इंदिरा की राजनीतिक वापसी दिखाई जाती है। क्लाइमेक्स में ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा की हत्या के बाद होती है।
Emergency Hindi Review : इंदिरा गांधी को स्क्रीन पर दिखाने का तरीका कैजुअल है
फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इंदिरा गांधी का चित्रण है। ये शुरुआत से ही किसी प्रोपेगैंडा की तरफ इशारा करता है। बनावटी नाक, बाल और मेकअप इस बात का इशारा है। इसके अलावा इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा जैसे डायलॉग का बार-बार कानों में पड़ना भी इस बात की तरफ इशारा करता है।
फिल्म के सिनेमेटोग्राफर उस दौर को दिखाने में काफी हद कमजोर रहे हैं। म्यूजिक उतना खास नहीं इसका फिल्मांकन तो और बुरा है। हरिहरण वाले गाने को ठीक कहा जा सकता है।
Emergency Hindi Review : सपोर्टिंग कास्ट को कम वेटेज
अनुपम खेर इंदिरा गांधी के कट्टर विरोधी जयप्रकाश नारायण की भूमिका में हैं, श्रेयस तलपड़े अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका में हैं और सतीश कौशिक (अपनी आखिरी भूमिका में) बाबू जगजीवन राम की भूमिका में हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री के हमेशा कटु आलोचक के रूप में दिखाया गया है।
इन प्रभावशाली व्यक्तियों को ऐसी बातें कहने और करने के लिए मजबूर किया गया है जो फिल्म की प्रोपेगैंडा वाली बात को साबित करने में मदद करती हैं।
Emergency Hindi Review : पहला हाफ, कमजोर दूसरे में संभलने की कोशिश
फिल्म का एग्जीक्यूशन कमजोर है, और पहले हाफ में कई सारी चीजों को ठीक किए जाने की जरूरत है। इंटरवल तब आता है जब इंदिरा आपातकाल की घोषणा करती हैं, और तब तक आप लगभग उम्मीद छोड़ चुके होते हैं।
लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म थोड़ी गति पकड़ती है। कंगना अपने किरदार में गहराई लाती हैं। दूसरे हाफ में कुछ दमदार और भावुक पलों की वजह से फिल्म को संभालने की कोशिश की गई है।
कंगना एक एक्ट्रेस के तौर पर इफेक्टिव हैं। आपातकाल के दौरान हुई घटनाएं और उनके बेटे संजय गांधी की मृत्यु को कंगना, निर्देशक के रूप में, संतुलित तरीके से पेश करती हैं। अनुपम खेर, श्रेयस तलपड़े और सतीश कौशिक का काम टुकड़ों में ठीक है, इस ताकत बनाया जा सकता था।
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