Freedom At Midnight Hindi Review : छोटे कद के लोग अक्सर पूरी तस्वीर नहीं देख पाते। डायलॉग जिन्ना के किरदार का, सोनी लिव की सीरीज फ्रीडम एट मिडनाइट से है।
शो उन घटनाओं पर बेस्ड है, जो आजादी और बंटवारे से पहले देश के राजनीतिक गलियारों में घट रहीं थी। उस दौर को तथ्यों के साथ परोसने के लिए Dominique Lapierre और Larry Collins की किताब Freedom At Midnight का सहारा लिया गया है।
सीरीज हमें उसे दौर से रूबरू करवाने की कोशिश करती है। कोशिश कहां तक कामयाब हुई जानेंगे।
Freedom At Midnight Hindi Review : आजादी की कहानी
कहानी मई 1946 में शुरू होती है। फ्रीडम मूवमेंट खत्म हो चुका है। अंग्रेज भारत, हिंदुस्तानियों के हाथ में सौंप कर जल्दी से जल्दी यहां से निकलना चाहते हैं। शो के शुरुआती हिस्सों में नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनते दिखाया जाता है, जो देश के पहले पीएम भी होंगे। इसी तरह कहानी मोहम्मद अली जिन्ना से भी परिचय करवाती है, जो टीबी जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं।
बैकग्राउंड सेटअप के बाद कहानी थोड़े-थोड़े अंतराल में पहले कलकत्ता, फिर नोआखली, फिर रावलपिंडी के कहूटा, और आखिर में बिहार की सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को दिखाती है।
ये घटनाओं कहानी को तेजी से पार्टीशन की तरफ ले जाती हैं। जिसके गांधी सबसे बड़े विरोधी है, जिन्ना और मुस्लिम लीग इसके हितैषी हैं। वहीं कांग्रेस की तरफ से नेहरू और सरदार पटेल सत्ता और देश के बीच असमंजस में झूल रहे हैं।
Freedom At Midnight Hindi Review : क्यों देखें सीरीज
आप कहेंगे पार्टीशन और आजादी पर तो बॉलीवुड ने कई कहानियां दिखाई हैं, अब इसे क्यों ही देखें। तो सुनिए फिल्मों ने हमें पार्टीशन और आजादी के बाद के दंगे दिखाए लेकिन देश के एक रहते, क्या हो रहा था वो शायद नहीं बताया।
फिल्मों ने हमें बताया कि अगर पाकिस्तान अलग न हुआ होता तो शायद सचिन और वसीम एक टीम में खेल रहे होते, और बाबर आजम भारत के स्थाई नंबर 4 होते।
लेकिन Freedom At Midnight हमें बताती है कि अगर हम साथ-साथ ही रहते तो शायद आज जितने आगे बढ़ चुके शायद नहीं बढ़ पाते, क्योंकि जो दंगे कुछ सालों तक जाति के नाम पर चले, वे शायद सतत बने रहते।
Freedom At Midnight Hindi Review : डायरेक्शन फील करने वाला है
खैर सीरीज पर लौटते हैं फिल्म के लिए Nikhil Advani की तारीफ बनती है। आजादी के दौर को बहुत खूबसूरती के साथ उतारा गया है। शो में कैरेक्टर के ड्रेस अप से लेकर उन्हें कॉपी करने में बारीकी बरती गई हैं।
टॉपिक बड़ा है सेंसेटिव है, ऐसे में डायरेक्टर ने उसके ट्रीटमेंट को बहुत एहतियात बरता है। दंगे वाले सीन्स महज इमोशनल टूल बनकर नहीं रह गए हैं। ऐसे समझिए, दंगों के बाद गांधी जी नोआखली जाते हैं, इसी समय माउंटबेटन की वायसराय नियुक्ति का कार्यक्रम होता है।
कहानी फ्रेम बाय फ्रेम एक तरफ नोआखली की सीन दिखाकर भावुक करती है, वहीं दूसरी तरफ सेरेमनी की तैयारियां और जश्न दिखाती है। यहां डायरेक्टर महज संवेदनाएं नहीं बटोरना चाहते बल्कि ऑडियंस के गुस्से को भी इनवाइट करते हैं।
Freedom At Midnight Hindi Review : हर चीज के पीछे एक मतलब है
लोकेशन और सेट्स बेहतर हैं। कैमरा और पोजिशनिंग भी बहुत कुछ बयां करता है। एक जगह जिन्ना और नेहरू की मुलाकात होती है। दोनों आमने-सामने बैठकर बात कर रहे होतें है लेकिन दोनों कभी एक साथ एक फ्रेम में नहीं आते क्योंकि दोनों के ओपिनियन डिफरेंट हैं और दोनों एक मत नहीं हैं। ऐसे और भी कई सीन हैं।
सीरीज का पेस काफी स्लो है। इसका बड़ा कारण फिल्म का किताब पर बेस्ड होना भी हो सकता है। इसके अलावा कहानी एक तरफ थोड़ी सी झुकी भी नजर आती है, वो शायद असल किताब की वजह से हो सकता है।
कुछ चीजें उस दौर के हिसाब से मॉर्डन लगी हैं। कुछ जगहों पर धड़ाधड़ इंग्लिश फ्लो को तोड़ने का काम करता है। दंगे वाले सीन्स की गहराई में थोड़ा सा और उतरा जा सकता था।
Freedom At Midnight Hindi Review : एक्टिंग और एक्टर शानदार
शो की कास्ट और एक्टिंग दिल जीतने वाली है। गांधी के किरदार में Chirag Vora ने कमाल का काम किया है। गांधी जी की उम्र के हिसाब से उनका शरीर थोड़ा यंग जरूर दिख रहा है लेकिन उन्होंने एक्सेंट ठीक पकड़ा है।
Sidhant Gupta ने भी नेहरू के लहजे को पकड़ने में मेहनत की है। लेकिन अगर आपने उनकी सीरीज Jubilee देखी है तो आपको उनका ये किरदार कमजोर लगेगा।
जिन्ना के किरदार में Arif Zakaria ने शानदार काम किया है, हमेशा सिगार या सिगरेट कैरी करना, खांसना सब कुछ अप टू द मार्क है।
सरदार के रोल में Rajendra Chawla और वीपी मेनन बने KC Shankar का काम भी बेहतर है। इसके अलावा अन्य के पास ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं है। विदेशी कलाकारों में माउंटबेटन कपल ठीक लगा है।
कुल मिलाकर सीरीज पुराने चीजों को नए तरीकों से दिखा रही है। किताब नहीं पढ़ने वाले लोग सीरीज देख सकते हैं और हिस्ट्री को जान सकते हैं। (Freedom At Midnight Hindi Review)
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